1. भूतिया पुस्तकालय (The Haunted Library)
परिचय (Introduction)
स्थान: शिवपुर गाँव के बाहर एक वीरान पुरानी लाइब्रेरी।
मुख्य पात्र:
- नील: 13 साल का जिज्ञासु और साहसी लड़का
- दादी माँ: गाँव की बुजुर्ग जो भूतों की कहानियाँ सुनाती थीं
- रहस्यमयी किताबें: जो रात में खुद बोलती थीं
- भूत पुस्तकाध्यक्ष: एक आत्मा जो सदियों से लाइब्रेरी की रक्षा कर रही थी
शुरुआत

नील को किताबें पढ़ना बेहद पसंद था, लेकिन उसके गाँव में अब कोई लाइब्रेरी नहीं बची थी। दादी माँ अक्सर एक पुराने पुस्तकालय की कहानी सुनाती थीं, जो कभी ज्ञान का खजाना था। लेकिन एक दिन अचानक बंद हो गया—और लोग कहने लगे कि वह जगह अब भूतिया हो गई है।
“वो जो लाइब्रेरी है ना… वहाँ अब किताबें खुद बोलती हैं,” दादी माँ फुसफुसाकर कहतीं, “और अगर कोई बच्चा अंदर चला गया… तो वापस नहीं आया।”
नील को यह सब कहानियाँ लगती थीं। एक दिन स्कूल की छुट्टी के बाद, उसने ठान लिया कि वह उस लाइब्रेरी को अपनी आँखों से देखेगा।
रहस्यमयी प्रवेश

वो शाम को टॉर्च लेकर लाइब्रेरी पहुँचा। जंग लगे दरवाज़े को धक्का देते ही एक सड़ी हुई किताब की खुशबू आई। अंदर धूल थी, जाले थे… और एक अजीब सी चुप्पी।
जैसे ही नील ने पहला कदम अंदर रखा, दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो गया।
धड़ाम!
वो डर गया। लेकिन साहस करके आगे बढ़ा।
किताबों की आवाज़ें

“तुम कौन हो?”
नील ने पलट कर देखा… कोई नहीं था।
“तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…”
एक किताब अपने आप खुली और हवा में पन्ने पलटने लगे। नील की आँखें फटी की फटी रह गईं।

तभी चारों ओर की किताबें बोलने लगीं।
“सदियों से कोई आया नहीं… क्या तुम हमारी पहेली हल कर सकते हो?”
नील काँप गया, लेकिन जवाब दिया, “क…कौन सी पहेली?”
आत्मा की चुनौती

एक बूढ़ी आत्मा सामने आई—पुस्तकाध्यक्ष की आत्मा।
“तुम अगर यहाँ से बाहर जाना चाहते हो, तो तुम्हें 3 पहेलियाँ हल करनी होंगी। वरना तुम यहीं रहोगे… हमारे बीच।”
नील ने सहमति में सिर हिलाया। आत्मा मुस्कराई और बोली:
पहेली 1:
“जो खोने पर मिले, और पाने पर छूटे… मैं क्या हूँ?”
नील ने सोचा… फिर मुस्कराया।
“ज्ञान।”
किताबों ने ताली बजाई, और एक किताब खुद सामने खुल गई।
पहेली 2:
“एक ऐसी चीज़, जो बँटने से बढ़ती है?”
नील बोला, “पढ़ाई… या फिर खुशी?”
आत्मा हँसी, “दोनों सही हैं। चलो मान लेते हैं।”
तीसरी पहेली:
“जिसके बिना किताबें भी बेमानी लगती हैं, वो क्या है?”
नील को लगा ये सबसे कठिन सवाल है।
वो सोचता रहा… फिर बोला, “समझ।”
बिजली सी चमकी, किताबें बंद हो गईं, और आत्मा बोली,
“तुमने साबित कर दिया कि डर नहीं, समझ सबसे बड़ी ताकत है। तुम जा सकते हो।”
रहस्य का खुलासा

नील बाहर भागा। लेकिन दरवाज़े पर रुका।
“तुम कौन थे?” उसने पूछा।
आत्मा बोली, “मैं वही पुस्तकाध्यक्ष हूँ, जिसे किताबों से प्यार था। जब राजा ने लाइब्रेरी बंद की, तब मैंने वादा किया था—जो सच्चे दिल से ज्ञान चाहेगा, उसे मैं राह दिखाऊँगा।”
अंत

नील वापस आया, लेकिन इस बार अकेला नहीं। उसने स्कूल के बच्चों को लेकर वहाँ सफाई करवाई, दीवारों को ठीक करवाया और लाइब्रेरी को फिर से खोला।
लोग कहते हैं, आज भी रात को वहाँ से कुछ किताबों की हल्की-सी फुसफुसाहट सुनाई देती है…
लेकिन अब वो डर नहीं, ज्ञान का आह्वान होता है।
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story)

“डर से नहीं, समझदारी से जीत होती है।”
जो अपने डर का सामना करते हैं, वही कुछ नया सीखते हैं और समाज के लिए मिसाल बनते हैं।
What You Have Learned from “भूतिया पुस्तकालय (The Haunted Library)”
1. सच्चाई हमेशा पहली नज़र में दिखाई नहीं देती
नील और उसके दोस्तों ने जिस पुस्तकालय को वर्षों से भूतिया माना जाता था, वही वास्तव में ज्ञान और रहस्य का खजाना निकला। इससे हमें यह सीख मिलती है कि केवल डर या अफवाहों के आधार पर किसी स्थान या व्यक्ति को आंकना गलत है।
2. डर से लड़ो, भागो मत
नील ने अकेले उस भूतिया पुस्तकालय में प्रवेश किया — न कि इसलिए कि उसे डर नहीं था, बल्कि इसलिए कि उसने डर का सामना करना चुना। यह दिखाता है कि सच्ची बहादुरी डर की अनुपस्थिति में नहीं, बल्कि डर के बावजूद कार्य करने में होती है।
3. जिज्ञासा और प्रयास से सत्य सामने आता है
छुपे हुए तहखाने, रहस्यमयी नक्शा, और पेंडुलम वाली घड़ी — इन सबने मिलकर नील को उस सच तक पहुँचाया जिसे कोई जानना नहीं चाहता था। यह कहानी हमें सिखाती है कि यदि हमारे अंदर जानने की इच्छा हो, तो कोई रहस्य नहीं रह सकता।
4. मित्रता और टीमवर्क से असंभव भी संभव होता है
हालाँकि नील अकेले गया, लेकिन ईशा, साहिल और रुचा का साथ और समर्थन उसे हर मोड़ पर मिला। एक-दूसरे की ताक़त को पहचान कर काम करना, हर चुनौती को आसान बना देता है।
5. ज्ञान और विरासत को संरक्षित करना जरूरी है
जिस पुस्तकालय को डर से भुला दिया गया था, वही नगर की पहचान और गौरव बन गया। इससे हमें सीख मिलती है कि हमारी पुरानी धरोहरों और ज्ञान के स्रोतों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
2. राजा और अदृश्य चोर (The King and the Invisible Thief)
भूमिका (Introduction)
स्थान: प्राचीन नगर रत्नपुर
मुख्य पात्र:
- राजा वीरसेन: न्यायप्रिय और बुद्धिमान शासक
- चंचल: एक चतुर ग्रामीण लड़की
- दिव्य चोर: जो हर रात महलों से चोरी करता, पर पकड़ा नहीं जाता
- सेनापति: जो हर किसी पर शक करता पर हल नहीं निकाल पाता
कहानी की शुरुआत
रत्नपुर एक अमीर राज्य था। महल में सोने-चांदी के ढेर, हीरे-मोती के खज़ाने और सुगंधित उद्यान थे। पर पिछले कुछ हफ्तों से एक अनोखा खतरा मंडरा रहा था…
हर रात महल से बेशकीमती चीज़ें गायब हो जातीं — बिना किसी ताले के टूटने, बिना किसी पहरेदार के कुछ सुने।
लोग इसे “दिव्य चोर” कहने लगे—जो शायद कोई आत्मा थी, अदृश्य, चालाक और डरावनी।
राजा की चिंता
राजा वीरसेन क्रोधित भी थे और चिंतित भी।
“हमारे पास सबकुछ है, फिर भी हम एक चोर को पकड़ नहीं पा रहे? यह मेरे शासन पर कलंक है।”
राजा ने ऐलान किया:
“जो भी इस चोर को पकड़वाएगा, उसे सौ स्वर्ण मुद्राएं और राजसभा में विशेष स्थान मिलेगा!”
चंचल का प्रवेश
गाँव की एक लड़की चंचल, जिसने कभी कोई किताब नहीं पढ़ी, लेकिन लोगों को देखकर बहुत कुछ सीखा था—उसने यह चुनौती स्वीकार की।
लोग हँसे—”अरे ये लड़की क्या चोर पकड़ेगी?”
चंचल बोली:
“चोर अगर चालाक है, तो उसे पकड़ने वाला और ज्यादा चालाक होना चाहिए।”
राजा ने उसे एक रात की अनुमति दी।
“सावधान रहना, चोर खतरनाक हो सकता है,” उन्होंने चेतावनी दी।
रहस्यमयी रात
चंचल ने कुछ नहीं किया, सिर्फ महल की दीवारें और खंभे गौर से देखे।
फिर उसने रसोई से थोड़ा आटा मंगवाया, और महल की सभी गलियों में आटा बिछा दिया।
राजा और सैनिकों ने यह देख हँसी उड़ाई।
“आटे से चोर पकड़ेगी? ये बच्चों का खेल है!”
लेकिन चंचल मुस्कराई—“कल सुबह बात करेंगे।”
भोर की जाँच
अगली सुबह, जब महल के पहरेदारों ने देखा—सभी कमरों के सामने तो आटा था, लेकिन राजकोष के सामने एक जगह साफ थी… जैसे किसी ने वहाँ से होकर रास्ता बनाया हो।
चंचल ने राजा से कहा,
“चोर महल के अंदर से ही है। उसे पता था कि आटे में फँस जाएगा, इसलिए उसने वहीं से रास्ता बनाया जहाँ उसने पहले ही सफाई कर रखी थी।”
जाल में फँसा चोर
राजा ने तुरंत उस जगह के छिपे हुए दरवाजे की जाँच करवाई।
एक गुप्त तहखाना निकला… और वहाँ था—महल का ही पुराना खजांची, जो दिव्य चोर बनकर सालों से चोरी कर रहा था।
वो अपने शरीर पर तेल लगाता था ताकि उसकी परछाईं भी न दिखे और किसी चीज़ पर निशान न छूटे।
चंचल को सम्मान
राजा ने चंचल को अपने सिंहासन के पास बैठाया।
“जो काम बड़े-बड़े सैनिक और मंत्री नहीं कर पाए, वो तुमने कर दिखाया।”
उसे सोने की मुद्राएँ दी गईं, और रत्नपुर में उसे ‘राजगुप्ति’ की उपाधि दी गई—गुप्त रहस्यों की रक्षक।
चोर का पछतावा
गिरफ़्तार खजांची रो रहा था।
“मैंने सोचा, मैं सबको चकमा दे सकता हूँ। पर इस छोटी सी लड़की ने मेरी **अहंकार की नींव तोड़ दी।”
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“न्याय की जीत हमेशा होती है।”
बुद्धि, साहस और सच्चाई—अगर इन तीनों को साथ रखा जाए, तो कोई भी रहस्य नहीं टिक सकता।
3. गधे की जीत (Victory of the Donkey)
Genre: Comedy + Animal Fable
Moral: हर किसी में कुछ खास होता है।
भूमिका (Introduction)
स्थान: घोड़ेपुर गाँव
मुख्य पात्र:
- भोलू गधा: आलसी, मजाक का पात्र, लेकिन दिल का साफ
- शेरा घोड़ा: गाँव का घमंडी रेसिंग चैम्पियन
- गांव वाले: जो रोज़ भोलू का मज़ाक उड़ाते
- रामू किसान: भोलू का इकलौता दोस्त
शुरुआत
घोड़ेपुर गाँव का नाम सुनते ही लोग सोचते थे – “वाह! ये तो घोड़ों का गाँव होगा।”
लेकिन असल में वहाँ भैंसे, ऊँट, कुत्ते, मुर्गियाँ और सिर्फ एक गधा था—भोलू।
भोलू शांत स्वभाव का था, लेकिन आलसी और धीमा। गाँव में उसे कोई काम नहीं देता था।
गाँव के बच्चे उसे देखकर गाते:
“भोलू गधा, सबसे सुस्त,
खाता है पत्ते, सोता है मस्त!”
भोलू की बेइज़्ज़ती
एक दिन गाँव में वार्षिक पशु दौड़ प्रतियोगिता घोषित हुई।
इनाम था: एक साल का मुफ्त चारा, और “गाँव का गौरव” का खिताब।
शेरा घोड़ा, बुलेट बैल, और झुनझुना खरगोश – सब भागने को तैयार थे।
भोलू का नाम सुनते ही भीड़ हँस पड़ी।
“गधा और दौड़? हाहाहा! वो तो गिनती तक पूरी नहीं कर सकता!”
लेकिन रामू किसान ने भोलू को पुचकारते हुए कहा—“तू सिर्फ भागना, जीतने की ज़िम्मेदारी भगवान की।”
दौड़ का दिन
दौड़ की शुरुआत हुई। शेरा और बुलेट आगे भागे… भोलू सबसे पीछे।
लोग हँसते, मज़ाक उड़ाते, लेकिन भोलू बस चलता रहा।
धीरे-धीरे… हौले-हौले।
घमंड का पत
अचानक दौड़ के बीच शेरा फिसल गया, बुलेट बैल एक खाई में जा गिरा, और झुनझुना खरगोश झाड़ियों में फँस गया।
लोग चौंक गए।
लेकिन भोलू?
वो अब भी अपने धीमे लेकिन स्थिर कदमों से आगे बढ़ रहा था।
भोलू की जीत
भीड़ सन्न रह गई जब भोलू धीरे-धीरे फिनिश लाइन पार कर गया।
कोई ताली नहीं, कोई ढोल नहीं… सब हक्के-बक्के।
फिर एक बच्चे ने चिल्लाया—“भोलू जीत गया!”
पूरा गाँव तालियों से गूंज उठा।
भोलू मुस्कराया… अपनी धीमी चाल में… और चुपचाप बैठ गया।
सम्मान और सबक
राजा ने भोलू को “शौर्य-गधा” की उपाधि दी।
गाँव वालों ने पहली बार उसे गले लगाया।
शेरा ने माफी मांगी—“मैंने तुम्हें कम आँका। पर आज समझ में आया—स्थिरता, जीत की असली कुंजी है।”
आखिरी दृश्य
अब भोलू गाँव का हीरो बन चुका था।
बच्चे अब गाते:
“भोलू गधा, सबसे खास,
जीत गया सबका विश्वास!”
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“हर किसी में कुछ खास होता है।”
कभी भी किसी की ताकत को उसकी चाल से मत आँको। कुछ लोग धीरे चलते हैं, लेकिन सही दिशा में।
4. जंगल का चुनाव (Election in the Jungle)
Genre: Satire + Comedy + Politics
Moral: नेता वही जो सबकी सुने।
भूमिका (Introduction)
स्थान: ग्रीनवुड जंगल
मुख्य पात्र:
- शेर सिंह: पुराने राजा, अब रिटायर हो रहे हैं
- लोमड़ी माया: चालाक और बोलने में माहिर
- हाथी वीरू: बलशाली लेकिन धीमे
- खरगोश चिंटू: तेज़ और ईमानदार
- तोता चीकू: जंगल का रिपोर्टर
- चुनाव आयोग: उल्लू जज और बंदर बाबू
शुरुआत
ग्रीनवुड जंगल में कई सालों तक शेर सिंह राजा रहे। वे अब बूढ़े हो चुके थे और चाहते थे कि कोई नई पीढ़ी की सोच वाला जानवर जंगल की जिम्मेदारी ले।
उन्होंने चुनाव की घोषणा की:
“जो भी जंगल का विकास, सुरक्षा और हँसी-खुशी का ध्यान रखेगा, वो अगला राजा बनेगा।”
चुनाव की हलचल
पूरा जंगल उत्साहित हो उठा।
- पेड़ो पर पोस्टर चिपकाए गए
- पत्तियों पर नारे लिखे गए
- हर जानवर ने अपनी पसंद का उम्मीदवार चुना
तोता चीकू लाइव कवरेज कर रहा था:
“देखिए, लोमड़ी माया रैली कर रही है, वादों की बारिश हो रही है!”
उम्मीदवारों की घोषणाएं
लोमड़ी माया:
“अगर मैं जीतूंगी, तो हर जानवर को रोज़ मीठे फल, फ्री मनोरंजन और सुरक्षा मिलेगी!”
(माया बहुत बोलती थी… लेकिन कभी काम नहीं करती थी।)
हाथी वीरू:
“मैं पुराने तरीके से काम करता हूँ, धैर्य रखो… मैं धीरे चलूँगा, पर मजबूत निर्णय लाऊँगा।”
(कुछ को पसंद, कुछ को बोर।)
खरगोश चिंटू:
“मैं युवा हूँ, ईमानदार हूँ, और हर जानवर की आवाज़ बनूँगा!”
(सीधा-सादा लेकिन सच्चा।)
चुनाव प्रचार की मस्ती
लोमड़ी ने रैली में नाचते-गाते मोर बुलाए, तोता चीकू ने कहा, “ये चुनाव है या जंगल महोत्सव?”
हाथी ने रास्तों को साफ करवाया – “काम से प्रचार करो,” उसने कहा।
चिंटू खरगोश ने रोज़ नए जानवरों से मिलकर उनकी परेशानियाँ जानीं—“असली प्रचार जनता की बात सुनना है।”
धांधली और साजिश
माया ने तोता चीकू को रिश्वत देने की कोशिश की—“तू मेरे बारे में अच्छे वीडियो बना।”
तोता ने तुरंत वीडियो बनाया—“लोमड़ी की लुका-छिपी”—और जंगल में वायरल हो गया।
हाथी वीरू पर आरोप लगा कि वो सिर्फ बड़े जानवरों की सुनता है।
चुनाव का दिन
बंदर बाबू और उल्लू जज ने चुनाव कराया—पत्तियों पर निशान लगाकर वोटिंग हुई।
शाम को गिनती शुरू हुई—सभी पेड़, चट्टान और गुफा में सन्नाटा था।
नतीजे की घोषणा
तोता चीकू चिल्लाया:
“चिंटू खरगोश 53% वोट से विजयी!”
भीड़ तालियों से गूंज उठी।
लोमड़ी का मुँह लटक गया, हाथी मुस्कराया और बोला—“युवा पीढ़ी की जीत हुई है।”
नए राजा का पहला आदेश
खरगोश चिंटू ने कहा:
“मैं राजा नहीं, सेवक हूँ। जंगल का हर कोना अब खुलकर बोलेगा, और हर आवाज़ सुनी जाएगी।”
उसने सबसे पहले जंगल पंचायत बनाई, जिसमें हर जानवर को प्रतिनिधित्व मिला।
न्याय और हास्य का मिश्रण
एक बार उल्लू जज ने चिंटू से कहा:
“इतना छोटा राजा?”
चिंटू ने मुस्कराते हुए कहा—“राजा बड़ा सोच से होता है, कद से नहीं।”
पूरे जंगल ने ठहाका लगाया।
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“नेता वही जो सबकी सुने।”
शब्दों से ज्यादा काम बोलते हैं, और लोकतंत्र में सबसे मजबूत वही होता है जो सबसे छोटों की बात भी सुन सके।
5. दूधवाले का बदला (The Milkman’s Revenge)
Genre: Thriller + Mystery + Revenge
Moral: कर्म का फल देर से ही सही, मिलता ज़रूर है।
भूमिका (Introduction)
स्थान: नवगांव कस्बा
मुख्य पात्र:
- हरि: सीधा-सादा दूधवाला
- विक्रम: भ्रष्ट नगरसेठ, जिसे पैसे और ताकत का घमंड था
- वकील शेखर: हरि का पुराना दोस्त
- ACP कविता: जो केस की गहराई तक जाती है
- 10 साल बाद की कहानी… एक आम आदमी की वापसी
शुरुआत
हरि एक सीधा-सादा दूधवाला था। वो रोज़ सुबह-सुबह साइकिल से दूध पहुँचाता, बच्चों से हँसी-मज़ाक करता, और समय पर हर काम करता।
लेकिन एक दिन उसकी जिंदगी बदल गई…
झूठा इल्ज़ाम
नगरसेठ विक्रम को शक था कि हरि ने उसकी गायों को जहर दिया है, जिससे उसका डेयरी बिज़नेस बंद हो गया।
बिना सबूत के, पैसे और पॉवर से विक्रम ने हरि को जेल भिजवा दिया।
गाँव वालों ने भी हरि को धोखेबाज़ मान लिया।
हरि का संघर्ष
जेल में हरि ने सिर्फ एक बात सोचकर वक्त बिताया—“एक दिन मैं खुद को बेकसूर साबित करूँगा… और इंसाफ लूँगा।”
उसे किताबों से लगाव हो गया, और वो पढ़ाई करने लगा।
10 साल बाद…
हरि जेल से रिहा हुआ।
लेकिन अब वो सिर्फ दूधवाला नहीं… एक पढ़ा-लिखा, शांत लेकिन गहराई वाला इंसान था।
वापसी की योजना
हरि चुपचाप शहर लौटा। अब वहाँ “विक्रम डेयरी ग्रुप” सबसे बड़ा नाम था।
लेकिन विक्रम अब भी उतना ही अहंकारी था।
हरि ने पहले वकील शेखर से मुलाकात की—“क्या केस फिर से खोला जा सकता है?”
शेखर बोला, “अगर सबूत हो, तो हाँ।”
हरि का मिशन
हरि ने एक छोटा-सा “मिल्क ट्रक बिज़नेस” शुरू किया नाम रखा: “सच्चा दूध”
लेकिन यह सिर्फ बिज़नेस नहीं, एक गुप्त मिशन था।
हरि ने अपने ट्रक ड्राइवर बनाते वक्त विक्रम की पुरानी फैक्ट्री में काम कर चुके लोगों को खोजा—सबसे मिला, और धीरे-धीरे पुराने राज़ निकालने लगा।
ACP कविता की एंट्री
हरि ने ACP कविता को एक चिट्ठी भेजी:
“10 साल पहले एक निर्दोष जेल गया। अब मैं नहीं, सबूत बोलेंगे।”
कविता केस में दिलचस्पी लेने लगी। उसने पाया कि विक्रम की गायें जहर से नहीं, गलत दवा से मरी थीं—जो खुद विक्रम के गोदाम में रखी गई थी।
गवाहों की वापसी
हरि ने पुराने मजदूरों को गवाह बनवाया।
वकील शेखर ने केस दोबारा खोला।
कोर्ट में सबूतों की बाढ़ आ गई:
- फैक्ट्री कैमरा फुटेज
- पुरानी दवाइयों के रजिस्टर
- और विक्रम के एक कर्मचारी की गवाही
फैसला
जज ने कहा:
“हरि निर्दोष है। विक्रम ने व्यापारिक लालच में झूठा इल्ज़ाम लगाया। अदालत उसे 5 साल की सज़ा सुनाती है।”
हरि की जीत
गाँव के लोग हरि के पास आए, माफी मांगी।
हरि मुस्कराया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
वो बस अपने ट्रक पर चढ़ा और लिखा:
“दूध वाला लौट आया है… अब दूध में पानी नहीं, इंसाफ होगा।”
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“कर्म का फल देर से ही सही, मिलता ज़रूर है।”
सच्चाई को दबाया जा सकता है, मिटाया नहीं। और जब सही वक्त आता है, तो इतिहास खुद सच्चे का साथ देता है।
6. समय का व्यापारी (The Merchant of Time)
Genre: Sci-Fi + Fantasy + Thriller
Moral: समय सबसे कीमती धन है।
भूमिका (Introduction)
स्थान: सोंपुर नगर
मुख्य पात्र:
- नकुल: एक चतुर लेकिन गरीब लड़का
- टिक-टिक बाबा: रहस्यमय घड़ीवाला जो समय बेचता है
- रुपेश: शहर का सबसे अमीर आदमी
- मीनू: नकुल की छोटी बहन
- समय बाज़ार: एक रहस्यमयी बाज़ार, जो केवल चुने हुए लोगों को दिखता है
शुरुआत
सोंपुर में नकुल नाम का एक लड़का रहता था। उसकी उम्र 15 साल थी, लेकिन हालातों ने उसे बहुत पहले बड़ा बना दिया था।
हर सुबह वह सब्ज़ी की टोकरी लेकर निकलता, स्कूल छोड़कर बहन मीनू का इलाज करवाता।
एक दिन बारिश में भीगते हुए, नकुल एक पुरानी दुकान के सामने रुका—“टिक-टिक वॉच सेंटर”।
दुकान के बोर्ड पर लिखा था:
“यहाँ समय बिकता है।”
टिक-टिक बाबा का रहस्य
भीतर अजीब सी खामोशी थी।
एक बूढ़ा आदमी बोला,
“समय चाहिए? मैं एक सेकंड से लेकर एक साल तक बेचता हूँ। कीमत तुम्हारे कर्म और लालच से तय होगी।”
नकुल हँसा—“क्या मज़ाक है!”
बाबा बोले—“अभी मज़ाक लग रहा है, पर जब तुम्हारे पास समय खत्म हो जाएगा, तब यही सबसे कीमती लगेगा।”
समय की पहली खरीद
नकुल ने मज़ाक में कहा—“ठीक है, मुझे एक दिन का समय दे दो।”
बाबा ने एक छोटी घड़ी दी—“इसमें एक दिन अतिरिक्त है। जो चाहो कर लो, पर संभलकर खर्च करना।”
नकुल को भरोसा नहीं था, लेकिन जैसे ही उसने घड़ी बांधी—समय रुक गया!
दुनिया थम गई, लोग ठहरे हुए पुतले जैसे खड़े थे।
नकुल हैरान।
समय से खेल
नकुल ने उस एक दिन में बहुत कुछ किया:
- डॉक्टर से बहन का इलाज करवाया
- चोरों से चोरी हुए पैसे वापस लिए
- रुपेश की तिजोरी से कुछ पैसे निकाले
- गरीबों को खाना बाँटा
जब समय वापस चला, सब कुछ सामान्य था… लेकिन नकुल के पास यादें थीं।
वो टिक-टिक बाबा के पास गया और बोला—“एक दिन और चाहिए।”
लालच का जाल
अब नकुल को आदत लग गई।
हर दिन वो नया समय खरीदने लगा—कभी आधा घंटा, कभी एक घंटा, कभी एक साल।
पर हर बार कीमत बढ़ती गई।
बाबा अब सपनों, यादों, और भावनाओं में भुगतान मांगते थे।
“हर बार समय तुम्हारे जीवन से कुछ लेता है,” बाबा चेताते।
लेकिन नकुल अब सुनता नहीं था।
बड़ी गड़बड़ी
एक दिन नकुल ने एक पूरा साल खरीदा।
वो सबसे अमीर बन गया—नई दुकानें, कारें, सम्मान…
पर जब वो घर लौटा—मीनू नहीं थी।
वो बाबा के पास गया—“मीनू कहाँ है?”
बाबा बोले—“तूने जो साल खरीदा, उसकी कीमत थी—तेरे जीवन की सबसे प्यारी चीज़।”
समझ का उजाला
नकुल फूट-फूट कर रोने लगा।
बाबा बोले—“अब भी समय है… लेकिन अगली घड़ी की कीमत तुम्हारे पूरे बचपन की होगी।”
नकुल ने घड़ी वापस की और कहा—“अब मैं समय नहीं खरीदूंगा… मैं उसे जीऊँगा।”
नई शुरुआत
नकुल ने अपनी दौलत छोड़ दी।
वो अब मीनू के साथ समय बिताता, सच्चा दोस्त बनता, खुद काम करता।
वो जान गया था कि समय पैसे से नहीं, केवल समझ और प्यार से जीता जाता है।
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“समय सबसे कीमती धन है।”
इसे खरीदा नहीं जा सकता, सिर्फ जिया जा सकता है। और जब हम उसे सही जगह खर्च करते हैं, तब ज़िंदगी का असली मतलब समझ आता है।
7. भूल-भुलैया का रहस्य (Mystery of the Maze)
Genre: Adventure + Puzzle + Suspense
Moral: टीमवर्क से हर मुश्किल आसान होती है।
भूमिका (Introduction)
स्थान: चक्रगुहा पर्वत की घाटी में स्थित एक रहस्यमयी भूल-भुलैया
मुख्य पात्र:
- अर्जुन: एक बुद्धिमान लड़का
- रिया: हिम्मती और तेज़ लड़की
- सिद्धू: मजाकिया लेकिन चालाक दोस्त
- भूल-भुलैया रक्षक: एक रहस्यमय वॉइस जो अंदर पहेलियाँ पूछता है
- नकली द्वार: रास्ता बताकर गुमराह करने वाली मायावी दीवारें
शुरुआत
शहर के पास स्थित चक्रगुहा पर्वत के नीचे एक पुरानी भूल-भुलैया थी, जिसके बारे में कहा जाता था कि जिसने भी उसमें प्रवेश किया, वो कभी वापस नहीं आया।
लेकिन एक दिन, इतिहास की किताब में अर्जुन को एक नोट मिला:
“जो सही उत्तर दे, वह दरवाज़ा पार कर सके। जो अकेला चला, वह खो गया।”
अर्जुन ने अपने दो दोस्तों, रिया और सिद्धू को बुलाया और कहा, “हम इस रहस्य को सुलझाएंगे। लेकिन एक शर्त—कोई किसी को अकेला नहीं छोड़ेगा।”
भूल-भुलैया का प्रवेश
तीनों दोस्त टॉर्च, रस्सी, और कंपास लेकर निकल पड़े।
गुफा में प्रवेश करते ही दरवाज़ा बंद हो गया… और एक गूंजती हुई आवाज़ आई:
“स्वागत है, seekers of truth!”
“रास्ता तब खुलेगा जब तुम मिलकर सोचोगे। वरना हर मोड़… तुम्हें भ्रम में डालेगा।”
पहली पहेली: पत्थरों का संतुलन
एक चौराहे पर 7 पत्थर थे और एक तराजू।
आवाज़ आई:
“सिर्फ एक पत्थर असली है, बाकी नकली। तीन बार तौल सकते हो। सही चुना तो रास्ता खुलेगा।”
सिद्धू बोला—“मैंने ये trick YouTube पर देखी है!”
उन्होंने मिलकर 3 बार तौलकर असली पत्थर ढूंढ निकाला।
दरवाज़ा खुला।
दूसरी चुनौती: भावनाओं की परीक्षा
अब एक कमरा जिसमें तीन दरवाजे थे और एक संदेश:
“जो द्वार तुम्हारे मन से मेल खाता है, वही सही है। एक दरवाज़ा डर दिखाएगा, एक लोभ और एक सच्चाई।”
रिया ने डर वाला दरवाज़ा खोला—आंधी-तूफान, अंधेरा…
अर्जुन ने सोचा—“सच्चा रास्ता डर का सामना करके ही खुलता है।”
वे सब उस दरवाजे से गुज़रे… और वो सही निकला।
तीसरी चुनौती: अहंकार बनाम टीमवर्क
तीनों अब अलग-अलग रास्तों में फँस गए।
तीनों ने देखा—अगर एक रास्ता चुनते हैं, तो वो खुद बाहर निकल सकते हैं, लेकिन बाकी दोस्त अंदर फँस जाएंगे।
सिद्धू ने कहा, “मैं नहीं जा रहा। मैं दोस्तों को छोड़ नहीं सकता।”
रिया और अर्जुन ने भी यही किया।
तभी दीवारें गायब हो गईं और आवाज़ गूंजी:
“सच्चे साथी वही हैं, जो साथ निभाते हैं। अब अंतिम द्वार तुम्हारे लिए खुल गया है।”
अंतिम रहस्य: चक्रद्वार
एक गोलाकार कमरा था, जिसमें 12 दरवाज़े थे। हर दरवाज़े पर समय लिखा था—1 बजे से लेकर 12 बजे तक।
दीवार पर लिखा था:
“वक़्त का सही चुनाव ही तुम्हें मंज़िल तक ले जाएगा। सही समय पर निकलो वरना… सब कुछ खो दोगे।”
अर्जुन सोच में पड़ गया… फिर मुस्कराकर बोला,
“समझो! हम तीनों की दोस्ती की शुरुआत दोपहर 3 बजे हुई थी—वहीं से हमारी यात्रा शुरू हुई थी।”
उन्होंने 3 बजे वाला दरवाज़ा चुना।
अचानक दरवाज़ा रोशनी में चमक उठा… और बाहर का रास्ता खुल गया।
नई शुरुआत
बाहर आते ही लोग उन्हें देखकर हैरान रह गए—
“पचास सालों में पहली बार कोई इस भूल-भुलैया से लौटा है!”
सरकार ने उन्हें ‘युवा खोजी’ पुरस्कार दिया।
अर्जुन बोला—“हमने ये मिलकर किया। यही असली जीत है।”
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“टीमवर्क से हर मुश्किल आसान होती है।”
सही निर्णय, एकजुटता और भरोसा—अगर ये तीनों हों, तो कोई भी भूल-भुलैया नहीं फंसा सकती।
8. सोने की मछली (The Golden Fish)
Genre: Magical Realism + Adventure + Greed vs Gratitude
Moral: “लालच बुरी बला है। कृतज्ञता से जीवन में सुख आता है।”
भूमिका (Introduction)
स्थान: एक शांत समुद्र तटीय गाँव – स्वर्णदीप
मुख्य पात्र:
- गोविंदा: एक गरीब लेकिन नेक दिल मछुआरा
- मीरा: गोविंदा की समझदार पत्नी
- सोने की मछली: एक रहस्यमय, जादुई मछली जो इच्छाएँ पूरी कर सकती है
- राजा वीरेंद्र: लालची राजा जो कुछ भी पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है
कहानी की शुरुआत
समुद्र के किनारे एक छोटी सी झोंपड़ी में गोविंदा और उसकी पत्नी मीरा रहते थे।
हर दिन गोविंदा सुबह अपनी नाव लेकर मछलियाँ पकड़ने जाता और शाम को जो भी मिलती, उसी से उनका गुज़ारा होता।
वो गरीब जरूर थे, लेकिन दोनों में बड़ा प्रेम और संतोष था।
जादुई मछली से मुलाका
एक दिन जब गोविंदा समुद्र में जाल फेंक रहा था, तभी उसके जाल में कुछ सुनहरा चमकने लगा।
जाल खींचते ही वो चौंक गया—एक सोने की मछली!
मछली अचानक बोली—
“हे मछुआरे! मैं एक जादुई मछली हूँ। अगर तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हारी तीन इच्छाएँ पूरी करूँगी।”
गोविंदा ने मुस्कराकर कहा,
“मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस तुम सुरक्षित लौट जाओ।”
लेकिन मछली हँसी और बोली:
“तुम्हारा निस्वार्थ भाव ही मेरी शक्ति है। जाओ, तीन दिन बाद तट पर आना।”
इच्छाओं की शुरुआत
गोविंदा घर लौटा और मीरा को सब बताया। मीरा ने कहा,
“तुमने अच्छा किया। लेकिन अगर वो इच्छाएँ दे ही सकती है, तो क्यों न छोटी-सी झोंपड़ी के बदले एक मजबूत घर हो जाए?”
तीन दिन बाद जब वे समुद्र के किनारे पहुँचे, मछली ने पूछा—
“क्या चाहते हो?”
गोविंदा बोला—“एक मजबूत घर।”
झोंपड़ी गायब, सामने सुंदर लकड़ी का घर बन गया।
दूसरी इच्छा: अहंकार की शुरुआत
अब मीरा थोड़ी बदलने लगी। बोली—“अगर मछली सब दे सकती है, तो हम गाँव के सबसे अमीर क्यों न बनें?”
गोविंदा ने दूसरी बार मछली से कहा—“हमारे पास बहुत सारा भोजन, कपड़े और नौकर हों।”
मछली ने फिर वही किया।
अब वे संपन्न थे, लेकिन संतोष गायब था।
तीसरी इच्छा: लालच की चपेट
अब मीरा और गोविंदा शहर के राजा से भी ज़्यादा प्रसिद्ध हो गए थे।
यह बात राजा वीरेंद्र को बुरी लगी। उसने उन्हें दरबार में बुलाया:
“एक मछुआरे के पास इतनी संपत्ति? कैसे?”
गोविंदा ने सच बताया। राजा लालच में आ गया और बोला:
“मुझे वो मछली चाहिए। उसे पकड़कर लाओ!”
गोविंदा डर गया।
वो समुद्र किनारे पहुँचा और मछली को बुलाया।
भयावह मोड़: शक्ति का दुरुपयोग
राजा वीरेंद्र ने जब मछली को देखा, तो बोला:
“मैं तुझे कैद करता हूँ। अब तू मेरी इच्छाएँ पूरी करेगी।”
मछली ने शांति से उत्तर दिया:
“जिसने मुझे प्रेम से छोड़ा, वही मेरी शक्ति का अधिकारी है।”
राजा ने उसे कैद करने की कोशिश की, लेकिन मछली ने समुद्र में भयंकर तूफ़ान खड़ा कर दिया।
राजमहल पानी में बह गया, और राजा अदृश्य हो गया।
पुनरारंभ: सबक की सीख
गोविंदा और मीरा का सब कुछ चला गया—घर, संपत्ति, नौकर।
अब वे फिर से अपनी झोंपड़ी में लौट आए।
मछली एक आखिरी बार आई और बोली:
“तुम्हें सबक मिल गया। लेकिन मैं फिर भी तुम्हें एक अंतिम वरदान देती हूँ—शांति और संतोष।”
अब गोविंदा और मीरा फिर से मछली पकड़ते हैं, लोगों की मदद करते हैं, और संतोषपूर्वक रहते हैं।
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“लालच बुरी बला है।”
अगर गोविंदा शुरू से ही लालच में पड़ता, तो सब कुछ खो देता। लेकिन उसके निस्वार्थ भाव ने उसे अंत में सच्चा सुख दिलाया।
9. अंधकार नगर (The City of Darkness)
Genre: Suspense + Horror + Social Reform
Moral: “अज्ञानता सबसे बड़ा अंधकार है, और शिक्षा ही सच्चा प्रकाश।”
भूमिका (Introduction)
स्थान: एक रहस्यमयी बस्ती – अंधकार नगर
मुख्य पात्र:
- राहुल: 16 वर्षीय जिज्ञासु लड़का
- दादी माँ: एक नेत्रहीन बुज़ुर्ग, जिसने इस नगर का राज जाना था
- “द ग्रे मास्क”: एक रहस्यमय चेहरा, जो लोगों को ज्ञान से वंचित करता है
- दीपांशु सर: स्कूल टीचर जो गांव को बदलना चाहते थे
अंधकार नगर – जहां सूरज भी नहीं चमकता
राजस्थान की सीमा पर बसा एक छोटा-सा गाँव – अंधकार नगर, नाम ही इसके भयावह इतिहास को बयान करता था।
इस गाँव में 30 साल से कोई प्रकाश नहीं था – न सूरज की रौशनी, न लाइट, न उम्मीद।
लोग दिन-रात अंधेरे में रहते थे।
सबने मान लिया था –
“ये गाँव श्रापित है। जो भी यहाँ से बाहर निकलेगा, मारा जाएगा।”
राहुल का आगमन
राहुल अपने माता-पिता के साथ पास के शहर से गाँव आया था।
गाँव वालों ने उन्हें चेतावनी दी—”इस जगह से दूर रहो।”
पर उसके पिता सरकारी अफसर थे। और माँ एक समाजसेवी।
राहुल ने पहली रात ही महसूस किया कि कुछ बहुत अजीब है।
- न कोई स्कूल
- न किताबें
- न कोई पढ़ा-लिखा बच्चा
- और हर रात एक सुनसान चीख हवा में गूंजती थी।
बूढ़ी दादी और रहस्य की झलक
राहुल की मुलाकात गांव की सबसे बुजुर्ग और नेत्रहीन महिला, गौरा दादी से हुई।
उन्होंने whispered किया:
“सिर्फ एक दीपक है जो ये अंधकार खत्म कर सकता है… ज्ञान का दीपक।”
उन्होंने बताया:
30 साल पहले गांव का स्कूल जला दिया गया था।
एक “सफेद चेहरा और ग्रे मास्क” पहने हुए इंसान ने गाँव के बच्चों को शिक्षा से वंचित किया।
जो कोई भी पढ़ाई करता—गायब हो जाता।
‘ग्रे मास्क’ का डर
गाँव में कई बच्चों ने चुपचाप किताबें पढ़ने की कोशिश की, पर हर कोई एक-एक कर ग़ायब हो गया।
इस “ग्रे मास्क” की एक ताकत थी—अज्ञानता का प्रचार।
वो लोगों को डराकर शिक्षा से दूर करता।
राहुल ने ये सुना और कहा:
“मैं डरूँगा नहीं। मैं गाँव के बच्चों को पढ़ाऊँगा।”
गुप्त लाइब्रेरी की खोज
रात को राहुल दादी के बताए रास्ते पर गया, जहां गांव का पुराना स्कूल था—अब खंडहर।
उसने वहाँ एक पुराना दरवाजा खोला… और अंदर थी एक गुप्त लाइब्रेरी।
मकड़ी के जालों से भरी, धूल से सनी, पर उसमें ज्ञान के रत्न थे—हजारों किताबें।
राहुल ने वहां दीपक जलाया, किताबें निकालीं और पढ़ाई शुरू की।
बच्चों की गुप्त पाठशाला
राहुल ने गांव के कुछ बच्चों को चुना और उन्हें रात में गुप्त रूप से पढ़ाना शुरू किया।
शुरुआत में बच्चे डरे हुए थे, पर जैसे-जैसे उन्होंने पढ़ना शुरू किया, उनमें आत्मविश्वास आया।
दीपांशु सर, एक रिटायर्ड मास्टर जो अब साधु बन गए थे, उन्होंने भी राहुल की मदद की।
धीरे-धीरे बच्चों ने रोशनी की तलाश शुरू की।
उनकी आँखों में अब डर नहीं, सवाल थे।
टकराव – ग्रे मास्क की वापसी
एक रात जब राहुल और बच्चे लाइब्रेरी में पढ़ रहे थे, अचानक वहाँ धुआं फैला और ग्रे मास्क प्रकट हुआ।
उसकी आवाज़ गूंजती थी—
“ज्ञान! प्रकाश! यह सब इस गाँव में निषिद्ध है!”
पर राहुल ने जवाब दिया:
“अंधकार से डरने वाले अब जाग चुके हैं।”
ग्रे मास्क ने बच्चों को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन तभी दीपांशु सर ने एक पुराना मंत्र पढ़ा—
और लाइब्रेरी की किताबें उड़ने लगीं, अक्षर हवा में चमकने लगे।
ग्रे मास्क चीखा और रोशनी में भस्म हो गया।
अंधकार का अंत
अगले दिन सूरज की पहली किरण गाँव में 30 साल बाद पड़ी।
गाँव वाले चौंके।
हर दीवार पर किताबों के पोस्टर लगे थे।
बच्चे स्कूल की ओर भाग रहे थे।
सरकार ने नया स्कूल खोला।
गाँव में पहली बार “अंधकार नगर” को नया नाम मिला—
“प्रकाशपुर”।
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“अज्ञानता सबसे बड़ा अंधकार है। शिक्षा ही सच्चा प्रकाश है।”
जिस समाज में शिक्षा का दीपक जलता है, वहाँ डर, भ्रम और अन्याय खत्म हो जाते हैं।
10. कल की चिट्ठी (The Letter from Tomorrow)
Genre: Sci-Fi + Suspense + Moral Dilemma
Moral: “हर वर्तमान निर्णय, भविष्य की दिशा तय करता है।”
भूमिका (Introduction)
स्थान: लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मुख्य पात्र:
- अर्जुन वर्मा (16): एक होशियार लेकिन आलसी छात्र
- प्रोफेसर आकाश मेहरा: टाइम-फिजिक्स के रिटायर्ड वैज्ञानिक
- भविष्य की चिट्ठी: जो अर्जुन को बदल देती है
- फ्यूचर अर्जुन (32 वर्ष): जो 2041 में बर्बादी से जूझ रहा है
आरंभ – एक सामान्य लेकिन लापरवाह जीवन
अर्जुन वर्मा एक 10वीं कक्षा का छात्र था, जो टैलेंटेड जरूर था लेकिन मेहनत से कोसों दूर।
- परीक्षा सिर पर थी, पर अर्जुन PUBG खेलता।
- मम्मी-पापा की डांट को हल्के में लेता।
- दोस्तों से कहता – “सब देख लूंगा, अभी तो मज़े करो।”
एक रात, पढ़ाई से बचने के लिए वह छत पर जाकर लेटा और सो गया।
अजीब शोर और एक रहस्यमयी चिट्ठी
सुबह 3 बजे, अर्जुन की आँख अचानक खुली।
काले बादलों के बीच बिजली चमकी और एक पुराना लिफाफा उसके पास गिरा।
उस पर लिखा था—“To: अर्जुन वर्मा, From: Future You (Year: 2041)”
शुरू में उसे लगा ये कोई मज़ाक है, लेकिन चिट्ठी में थी उसकी लिखावट… और बहुत खौफनाक बातें।
चिट्ठी का मज़मून – भविष्य की त्रासदी
“अर्जुन… अगर तूने अभी खुद को नहीं बदला, तो 2041 में तू सब कुछ खो देगा।
मैंने स्कूल को हल्के में लिया। कॉलेज छोड़ दिया। छोटे-मोटे स्कैम में फँसा।
अब 32 की उम्र में बेरोजगार हूँ।
माँ-पापा अब इस दुनिया में नहीं। और मैं एक भिखारी वैज्ञानिक बन चुका हूँ।
तुझे ये चिट्ठी एक टाइम-लूप के ज़रिए मिल रही है, जो प्रोफेसर मेहरा ने बनाया था।
आखिरी मौका है—खुद को बदल ले।”
अर्जुन डर गया। पहली बार उसका दिल कांपा।
प्रोफेसर मेहरा – टाइम मशीन के जनक
अर्जुन चिट्ठी लेकर अपने पड़ोसी प्रोफेसर मेहरा के पास गया, जो कभी ISRO में वैज्ञानिक थे।
उन्होंने बताया कि उन्होंने टाइम-चिट्ठी तकनीक पर काम किया है।
हर इंसान अपने फैसलों से एक alternate future बनाता है।
“तू जो सोचता है कि आज का आलस मामूली है, वही तेरे कल की बर्बादी का बीज है।”
‘अल्टरनेट रियलिटी’ का अनुभव
प्रोफेसर ने अर्जुन को एक स्लीप-डिवाइस पहनाया, जिससे वह 15 मिनट के लिए 2041 का अनुभव ले सकता था।
अर्जुन जैसे ही आंखें बंद करता है…
2041: बर्बादी की दुनिया
अर्जुन खुद को एक गंदे से झोपड़े में पाता है।
वो 32 साल का है, बाल बिखरे, कपड़े फटे, आँखें खाली।
रात को शराब के लिए झगड़ता है।
फोन पर लोन एजेंट धमकी दे रहे हैं।
दीवार पर माँ की पुरानी तस्वीर… जिस पर हार चढ़ा है।
आंसू उसकी आंखों से निकल पड़ते हैं।
वापसी – और जीवन का नया पन्ना
15 मिनट बाद जैसे ही वो नींद से जागता है, उसकी सांसें तेज़ थीं।
माँ की आवाज़ आती है:
“बेटा, स्कूल का टाइम हो गया। उठ जा।”
अर्जुन दौड़कर माँ को गले लगाता है।
उसी दिन से:
- उसने सोशल मीडिया और गेम्स छोड़ दिए
- 10th की पढ़ाई में जुट गया
- प्रोफेसर मेहरा से रोज़ 1 घंटा मैथ्स सीखने लगा
- हर रविवार गरीब बच्चों को पढ़ाने लगा
फिर से चिट्ठी… लेकिन इस बार उज्ज्वल भविष्य से
10 साल बीते।
अर्जुन अब IIT से ग्रेजुएट है, एक रोबोटिक्स कंपनी का मालिक और एक प्रेरणादायक स्पीकर।
एक दिन उसकी लैब में फिर वही लिफाफा गिरता है।
इस बार लिखा है:
“Thank You अर्जुन…
तूने सही फैसला लिया। अब मैं 2041 में एक scientist हूँ, अपने माता-पिता के साथ और दुनिया को बदल रहा हूँ।”
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“आज के छोटे निर्णय ही कल के भाग्य निर्माता होते हैं।”
समय का पहिया हमें रोज एक मौका देता है, बस हमें उसे पहचानना होता है।