मिका (Introduction)
स्थान: प्राचीन नगर रत्नपुर
मुख्य पात्र:
- राजा वीरसेन: न्यायप्रिय और बुद्धिमान शासक
- चंचल: एक चतुर ग्रामीण लड़की
- दिव्य चोर: जो हर रात महलों से चोरी करता, पर पकड़ा नहीं जाता
- सेनापति: जो हर किसी पर शक करता पर हल नहीं निकाल पाता
कहानी की शुरुआत

रत्नपुर एक अमीर राज्य था। महल में सोने-चांदी के ढेर, हीरे-मोती के खज़ाने और सुगंधित उद्यान थे। पर पिछले कुछ हफ्तों से एक अनोखा खतरा मंडरा रहा था…
हर रात महल से बेशकीमती चीज़ें गायब हो जातीं — बिना किसी ताले के टूटने, बिना किसी पहरेदार के कुछ सुने।
लोग इसे “दिव्य चोर” कहने लगे—जो शायद कोई आत्मा थी, अदृश्य, चालाक और डरावनी।
राजा की चिंता

राजा वीरसेन क्रोधित भी थे और चिंतित भी।
“हमारे पास सबकुछ है, फिर भी हम एक चोर को पकड़ नहीं पा रहे? यह मेरे शासन पर कलंक है।”
राजा ने ऐलान किया:
“जो भी इस चोर को पकड़वाएगा, उसे सौ स्वर्ण मुद्राएं और राजसभा में विशेष स्थान मिलेगा!”
चंचल का प्रवेश

गाँव की एक लड़की चंचल, जिसने कभी कोई किताब नहीं पढ़ी, लेकिन लोगों को देखकर बहुत कुछ सीखा था—उसने यह चुनौती स्वीकार की।
लोग हँसे—”अरे ये लड़की क्या चोर पकड़ेगी?”
चंचल बोली:
“चोर अगर चालाक है, तो उसे पकड़ने वाला और ज्यादा चालाक होना चाहिए।”
राजा ने उसे एक रात की अनुमति दी।
“सावधान रहना, चोर खतरनाक हो सकता है,” उन्होंने चेतावनी दी।
रहस्यमयी रात

चंचल ने कुछ नहीं किया, सिर्फ महल की दीवारें और खंभे गौर से देखे।
फिर उसने रसोई से थोड़ा आटा मंगवाया, और महल की सभी गलियों में आटा बिछा दिया।
राजा और सैनिकों ने यह देख हँसी उड़ाई।
“आटे से चोर पकड़ेगी? ये बच्चों का खेल है!”
लेकिन चंचल मुस्कराई—“कल सुबह बात करेंगे।”
भोर की जाँच

अगली सुबह, जब महल के पहरेदारों ने देखा—सभी कमरों के सामने तो आटा था, लेकिन राजकोष के सामने एक जगह साफ थी… जैसे किसी ने वहाँ से होकर रास्ता बनाया हो।
चंचल ने राजा से कहा,
“चोर महल के अंदर से ही है। उसे पता था कि आटे में फँस जाएगा, इसलिए उसने वहीं से रास्ता बनाया जहाँ उसने पहले ही सफाई कर रखी थी।”
जाल में फँसा चोर

राजा ने तुरंत उस जगह के छिपे हुए दरवाजे की जाँच करवाई।
एक गुप्त तहखाना निकला… और वहाँ था—महल का ही पुराना खजांची, जो दिव्य चोर बनकर सालों से चोरी कर रहा था।
वो अपने शरीर पर तेल लगाता था ताकि उसकी परछाईं भी न दिखे और किसी चीज़ पर निशान न छूटे।
चंचल को सम्मान

राजा ने चंचल को अपने सिंहासन के पास बैठाया।
“जो काम बड़े-बड़े सैनिक और मंत्री नहीं कर पाए, वो तुमने कर दिखाया।”
उसे सोने की मुद्राएँ दी गईं, और रत्नपुर में उसे ‘राजगुप्ति’ की उपाधि दी गई—गुप्त रहस्यों की रक्षक।
चोर का पछतावा

गिरफ़्तार खजांची रो रहा था।
“मैंने सोचा, मैं सबको चकमा दे सकता हूँ। पर इस छोटी सी लड़की ने मेरी **अहंकार की नींव तोड़ दी।”
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
“न्याय की जीत हमेशा होती है।”
बुद्धि, साहस और सच्चाई—अगर इन तीनों को साथ रखा जाए, तो कोई भी रहस्य नहीं टिक सकता।
आपने इस कहानी से क्या सीखा? (What You Have Learned from the Story)
बुद्धि बल से बड़ा कोई हथियार नहीं होता:
हरिदास ने यह साबित कर दिया कि किसी भी जटिल समस्या का समाधान तलवार से नहीं, स्मार्ट सोच और योजना से निकाला जा सकता है।
सच्चाई कितनी भी छुपी हो, एक दिन सामने आ ही जाती है:
मंत्री ने लाख चालाकी की, लेकिन उसकी गलती की छोटी सी निशानी (हाथ पर राख) उसे पकड़वा गई। यह सिखाता है कि सच को दबाया नहीं जा सकता।
हर समस्या का समाधान होता है — अगर हम शांत दिमाग से सोचें:
जहां पूरी राजसभा हिम्मत हार चुकी थी, वहीं एक साधारण ग्रामीण ने दिखाया कि समस्या नहीं, सोच का तरीका मायने रखता है।
ईमानदारी और न्याय का साथ देने वालों को हमेशा सम्मान मिलता है:
हरिदास को राजा ने अपना सलाहकार बना लिया — ये दर्शाता है कि जो सत्य और न्याय का साथ देता है, उसका जीवन ऊँचाइयों तक पहुँचता है।